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Showing posts from July, 2021

दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् श्लोक का अर्थ

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नीति वचन दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।  मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः ॥ मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा तथा महापुरूषों का संग, यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपा से प्राप्त होती हैं।  

न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते श्लोक का अर्थ

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विदुरनीतिः न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।  गाङ्गो ह्रद ईवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥ भावार्थ - जो व्यक्ति न तो सम्मान पाकर अहंकार करता है और न अपमान से पीड़ित होता है । जो जलाशय की भाँति सदैव क्षोभरहित और शान् त रहता है, वही ज्ञानी है अतः हमे भी ऐसा स्वभाव बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।  

चिरकारी हि मेधावी नापराध्यति कर्मसु श्लोक का अर्थ

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  सुभाषितम् चिरकारी हि मेधावी नापराध्यति कर्मसु ।  चिरेण सर्वकार्याणि विमृश्यार्थान्प्रपद्यते ॥ भावार्थ - कुछ देर से किन्तु सोच समझकर काम करनेवाला मनुष्य के काम में कभी गलत नहीं होता तथा काम के हर पहलू पर विचार करने से उसे जो करना होता हैं वह सब वो करता है, इसलिए कोई भी कार्य पूर्ण सोच विचार कर करना चाहिए।

कोकिलानां स्वरो रूपं, स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् श्लोक का अर्थ

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  सुभाषितम् कोकिलानां स्वरो रूपं, स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ।  विद्या रूपं कुरूपाणां, क्षमा रूपं तपॅस्विनाम्॥ कोयल का सौन्दर्य उसके स्वर में, स्त्रियों का सौन्दर्य उनका पति के साथ सामञ्जस्य तथा अनुकूलन में, भद्दे लोगों का सौन्दर्य उनके विद्वता में और तपस्वियों का सौन्दर्य उनके क्षमा में होता है ।

षण्णामात्मनि नित्यानाम् ऐश्वर्यं योऽधिगच्छति श्लोक का अर्थ

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*षण्णामात्मनि नित्यानाम्* *ऐश्वर्यं योऽधिगच्छति।* *न स पापैः कुतोऽनर्थै:* *युज्यतेविजितेन्द्रियः॥* अर्थात - जो व्यक्ति मन में घर बनाकर रहने वाले काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) तथा मात्सर्य (ईष्या) नामक छह शत्रुओं को जीत लेता है, वह जितेंद्रिय हो जाता है। ऐसा व्यक्ति दोषपूर्ण कार्यों, पाप-कर्मों में लिप्त नहीं होता। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

असन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यः कृशधनः श्लोक का अर्थ

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  नीतिशतकम् असन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यः कृशधनः .  प्रिया न्याय्या वृत्तिर्मलिनमसुभङ्गेऽप्यसुकरम् ।।  विपद्युच्चैः स्थेयं पदमनुविधेयं च महताम्।  सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम् ।। भावार्थ - दुर्जनों से प्रार्थना या याचना नहीं करनी चाहिए, निर्धन या अल्पधनी मित्र से धन नहीं मांगना चाहिए, न्यायपूर्ण जीवन जीना चाहिए, मृत्युवत् भय होने पर भी अनैतिक कार्य नहीं करना चाहिए, विपत्तिकाल में धैर्य रखना चाहिए तथा महान लोगों के दिखाए गए रास्ते पर चलना चाहिए। इस प्रकार तलवार की धार पर चलने जैसे कठोर मार्ग को अपनाकर जीवन व्यतीत करना ही अच्छा है ।

अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च श्लोक का अर्थ

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 *अर्थागमो नित्यमरोगिता च* *प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।* *वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या* *षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन्॥* अर्थात - धन का आगम, स्वस्थ जीवन, अनुकूल पत्नी, प्रियभाषिणी भार्या, आज्ञाकारी पुत्र तथा धनार्जन करने वाली विद्या का ज्ञान ये छह बातें संसार में सुख प्रदान करती हैं। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् श्लोक का अर्थ

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  ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् ।  हित्वा मान् शरणं याताः कथा तान्स्त्यक्तुमुत्सहे ॥ जो भक्त स्त्री, पुत्र, गृह, गुरुजन, प्राण, धन, इहलोक, और परलोक इन सब का त्याग कर मेरी ही शरण में आ गये हैं, उन्हें छोड़ने का संकल्प भी मैं कैसे कर सकता हूं। (श्रीमद्भागवत ९.४.६४)

आत्मनो गुरूरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः श्लोक का अर्थ

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 *आत्मनो गुरूरात्मैव* *पुरुषस्य विशेषतः।* *यत् प्रत्यक्षानुमानाभ्यां* *श्रेयोSसावनुविन्दते।।* (श्रीमद्भागवत 11/07/20) अर्थात - अपना गुरु स्वयं प्राणी ही होता है, विशेषकर पुरुष के लिए, क्योंकि वह प्रत्यक्ष और अनुमान से श्रेय को जान लेने में सक्षम होता है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏* *गुरुपूर्णिमा की अनेकशः शुभकामनाएँ*

गुरु पूर्णिमा संस्कृत श्लोक

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विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम् । ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः ॥ संस्कृत धारा Modesty yields service, service to the Guru yields knowledge, knowledge yields detachment, and detachment yields salvation. हिन्दी अनुवाद विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति (स्थायित्व) है, और विरक्ति का फल आश्रवनिरोध (बंधनमुक्ति तथा मोक्ष) है।

गुरु पूर्णिमा picture

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  शुभ गुरु पूर्णिमा अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।  आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

षडेव तु गुणा: पुंसा न हातव्याः कदाचन श्लोक का अर्थ

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  षडेव तु गुणा: पुंसा न हातव्याः कदाचन। सत्यं दानमनालस्यम् अनसूया क्षमा धृतिः॥ अर्थात - व्यक्ति को कभी भी सच्चाई, दानशीलता, निरालस्य, द्वेषहीनता, क्षमाशीलता और धैर्य - इन छह गुणों का त्याग नहीं करना चाहिए। 🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏

उत्तमै: सह साङगत्यं पण्डितै: सह सत्कथाम् श्लोक का अर्थ

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  *उत्तमै: सह साङगत्यं* *पण्डितै: सह सत्कथाम्।* *अलुब्धै: सह मित्रत्वं* *कुर्वाणो नावसीदति।।*       अर्थात - उत्तम स्वभाव वाले सज्जनों का संग, विद्वानों के साथ सत्कथा का श्रवण एवं निर्लोभी मनुष्यों के साथ मित्रता रखने वाला कभी दुखी नही होता। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

आत्मनाऽत्मानमन्विच्छन्-मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतैः श्लोक का अर्थ

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*आत्मनाऽत्मानमन्विच्छन्-* *मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतैः।* *आत्मा ह्येवात्मनो बन्धु:* *आत्मैव रिपुरात्मनः॥* अर्थात - मन-बुद्धि तथा इंद्रियों को आत्म-नियंत्रित करके स्वयं ही अपने आत्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि आत्मा ही हमारा हितैषी और आत्मा ही हमारा शत्रु है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

असन्त्यागात् पापकृतामपापांस् श्लोक का अर्थ

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  *असन्त्यागात् पापकृतामपापांस्-* *तुल्यो दण्डः स्पृशते मिश्रभावात्।* *शुष्केणार्दं दह्यते मिश्रभावात्-* *तस्मात् पापैः सह सन्धिं न कुर्य्यात्॥* अर्थात् - दुर्जनों की संगति के कारण निरपराधी भी उन्हीं के समान दंड पाते है; जैसे सुखी लकड़ियों के साथ गीली लकडी भी जल जाती है। इसलिए दुर्जनों के साथ मैत्री नहीं करनी चाहिए। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः श्लोक का अर्थ

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  सुभाषितम् कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ।  काल: सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ भावार्थ - काल सभी प्राणियों को निगल जाता है । काल प्रजा का संहार करता है। सबके सो जाने पर भी काल जागृत रहता है तथा काल पर विजय पाना असम्भव है अतः हमें अहंकार करने से बचना चाहिए ।

अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता श्लोक का अर्थ

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  *अभ्यावहति कल्याणं* *विविधं वाक् सुभाषिता।*  *सैव दुर्भाषिता राजन्* *अनर्थायोपपद्यते॥* अर्थात - मीठे शब्दों में बोली गई बात हितकारी होती है और उन्नति के मार्ग खोलती है लेकिन यदि वही बात कटुतापूर्ण शब्दों में बोली जाए तो दुःखदायी होती है और उसके दूरगामी दुष्परिमाण होते हैं। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे श्लोक का अर्थ

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  आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे ।  राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।। रोगी होने पर, दुःख प्राप्त होने पर , अकाल पड़ने पर, शत्रुओं से संकट आने पर, न्यायालय में और श्मशान में जो साथ देता है वही बन्धु (मित्र) है चाणक्यनीति (१/१२)

रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम् श्लोक का अर्थ

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 *रोहते सायकैर्विद्धं* *वनं परशुना हतम्।* *वाचा दुरुक्तं बीभत्सं* *न संरोहति वाक्क्षतम्॥* अर्थात - बाणों से छलनी और फरसे से कटा गया जंगल पुनः हरा-भरा हो जाता है लेकिन कटु-वचन से बना घाव कभी नहीं भरता, अतः कटुवचन का परित्याग करना चाहिए। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं श्लोक का अर्थ

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 प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं,  रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।  सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं, ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिमत्यरूपम्॥  भावार्थ:- सूर्य का वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद, कलेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं। जो सृष्टि आदि के कारण हैं, ब्रह्मा और शिव के स्वरूप हैं जिनका रूप जय तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है, प्रातः काल मैं उनका स्मरण करता हूँ।

पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा श्लोक का अर्थ

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  *पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा।*  *वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः॥* ~अर्थात~- अन्याय के मार्ग पर चलने वाला राजा (पुरुष) अपने पिता-पितामहादि से विरासत में मिले राज्य को उसी प्रकार से नष्ट कर देता है जैसे तेज हवा बादलों को छिन्न -भिन्न कर देती है, अतः अन्याय मार्ग का अनुसरण कदापि न करें। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

गन्धेन गावः पश्यन्ति वेदैः पश्यन्ति ब्राह्मणाः shlok ka arth

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  गन्धेन गावः पश्यन्ति वेदैः पश्यन्ति ब्राह्मणाः। चारैः पश्यन्ति राजान: चक्षुर्भ्यामितरे जनाः॥ अर्थात - गायें गंध से देखती (विशिष्ट ज्ञान अर्जित करती) हैं, ज्ञानी लोग वेदों से देखते (विशिष्ट ज्ञान अर्जित करते) हैं, राजा गुप्तचरों से देखते (विशिष्ट ज्ञान अर्जित करते) हैं तथा जनसामान्य नेत्रों से देखते हैं। मङ्गलं सुप्रभातम्

लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा shlok ka arth

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  सुभाषितम् लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा ।  मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च तत्वार्थेन च पण्डितम्॥ भावार्थ - लोभी मनुष्य को धन का प्रलोभन देकर वश किया जा सकता है। क्रोधित व्यक्ति के साथ नम्र भाव रखकर उसे वश किया जा सकता है। मूर्ख मनुष्य को उसके इच्छानुरूप व्यवहार करके वश कर सकते है तथ ज्ञानी व्यक्ति को मुलभूत तत्व बताकर वश कर सकते है।

अनपेक्ष्य निजं स्थानं निजां शक्तिं निजाकृतिम् श्लोक का अर्थ

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 अनपेक्ष्य निजं स्थानं निजां शक्तिं निजाकृतिम् । पुष्प्यन्ति कलिका भूयो माधवस्पर्शहर्षिताः।। कलियाँ कहाँ सोचती हैं कि वे उगी कहाँ हैं वे समर्थ कितनी हैं  वे लगती कैसी हैं वे तो वसन्त का स्पर्श पाते ही खुशी के मारे जहाँ होती हैं, जितनी होती हैं, जैसी होती हैं– बस खिल उठती हैं

संस्कृत गणेश जी श्लोक गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे श्लोक का अर्थ

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  *गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे।* *अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः॥* अर्थात - विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों वाले गणेश नामक ज्योतिपुंज को नमस्कार है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

पंचतंत्र - उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये श्लोक का अर्थ

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  उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।  पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्।। मूर्खो का क्रोध उन्हें उपदेश देने से शांत नहीं होता हैं अपितु अधिक बढ़ जाता हैं और वे उपदेश देने वाले को ही हानि पहुंचा सकते हैं। | जिस प्रकार से सांपो को दूध पिलाने से उनके विष की ही बृद्धि होती हैं। (पंचतंत्र)

सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा श्लोक का अर्थ

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सुभाषितम् सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा ।  शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः ॥ भावार्थ- सत्य मेरी माता, ज्ञान मेरे पिता, धर्म मेरा बन्धु, दया मेरा सखा, शांति मेरी पत्नी तथा क्षमा मेरा पुत्र है, ये छः मेरे पारिवारिक सदस्य हैं इसलिए इनका आश्रय लेना चाहिए।  

अनाथस्य जगन्नाथ: नाथस्त्वं मे न संशयः रथयात्रा की मंगलकामनाएं

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  अनाथस्य जगन्नाथ: नाथस्त्वं मे न संशयः ।  यस्य नाथो जगन्नाथ: तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥ अर्थात जिनका इस दुनिया में कोई नहीं, जगन्नाथ भगवान उनके स्वामी है। इसमें कोई शंका नहीं और जिनके स्वामी जगन्नाथ हैं, उनको जीवन मे क्या दुःख हो सकता है? कुछ भी नहीं । #रथयात्रा2021 की शुभकामनाएँ

निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते श्लोक का अर्थ

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  निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते। अनास्तिकः श्रद्दधान: एतत् पण्डितलक्षणम्॥ अर्थात - जो सदा प्रशस्त धर्मयुक्त कर्मों का करने और निन्दित अधर्मयुक्त कर्मों को कभी न करनेवाला, जो न कदापि ईश्वर, वेद और धर्म का विरोधी हो और परमात्मा, सत्यविद्या और धर्म में दृढ़ विश्वासी हो, वह मनुष्य ‘पण्डित’ के लक्षण से युक्त होता है। मङ्गलं सुप्रभातम्

दानं होमं दैवतं मङ्गलानि प्रायश्चित्तान् विविधान् लोकवादान् श्लोक का अर्थ

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*दानं होमं दैवतं मङ्गलानि* *प्रायश्चित्तान् विविधान् लोकवादान्।* *एतानि यः कुरुते नैत्यकानि* *तस्योत्थानं देवता राधयन्ति॥* अर्थात - जो व्यक्ति दान, होमयज्ञ, देव-स्तुति, मांगलिक कर्म, प्रायश्चित्त कर्म तथा लोकाचार कार्यों को यथाशक्ति नियमपूर्वक करता है, देवी-देवता स्वयं उसकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव श्लोक का अर्थ

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*द्वाविमौ ग्रसते भूमिः* *सर्पो बिलशयानिव।* *राजानं चाविरोद्धारं* *ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥* *अर्थात-* जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेश गमन से डरने वाले ब्राह्मण को समय ग्रसित कर लेता है, अतः उचित काल मे शत्रु का विरोध और ब्राह्मण का परदेश गमन कर यथार्थ का प्रतिपादन आवश्यक हो जाता है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत् करिष्यति श्लोक का अर्थ

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 *चित्तोद्वेगं विधायापि*           *हरिर्यद्यत् करिष्यति।*           *तथैव तस्य लीलेति*           *मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत॥* अर्थात - चित्तोद्वेग में संयम रख कर और ऐसा मान कर कि श्रीहरि जो भी करेंगे वह उनकी लीला मात्र है सब शीघ्र ठीक हो जाएगा, चिंता को शीघ्र त्याग दें। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे श्लोक का अर्थ

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 *यस्य कृत्यं न जानन्ति* *मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।* *कृतमेवास्य जानन्ति* *स वै पण्डित उच्यते॥* अर्थात - दूसरे लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते श्लोक का अर्थ

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  यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते। न किञ्चिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः॥ अर्थात - विवेकशील और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव ये चेष्टा करते हैं की वे यथाशक्ति कार्य करें और वे वैसा करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करते। मङ्गलं सुप्रभातम्

यत्र स्त्री यत्र कितवो बालो यत्रानुशासिता श्लोक का अर्थ

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*यत्र स्त्री यत्र कितवो* *बालो यत्रानुशासिता।*  *मज्जन्ति तेऽवशा राजन्* *नद्यामश्मप्लवा इव।।*  अर्थात - राजन्! जहाँ का शासन स्त्री, जुआरी और बालक के हाथ में होता है, वहाँ के लोग नदी में पत्थर की नाव पर  बैठने वालों की भाँति विवश होकर विपत्ति के समुद्र में डूब जाते हैं। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

मित्रं भुड्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो श्लोक का अर्थ

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मित्रं भुड्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो* *मितं स्वपित्यमितं कर्म कृत्वा।*  *ददात्यमित्रेष्वपि याचितः संस्-* *तमात्मवन्तं प्रजहत्यनर्थाः॥* अर्थात - जो व्यक्ति अपने आश्रित लोगों को बाँटकर स्वयं थोड़े से भोजन से ही संतुष्ट हो जाता है, कड़े परिश्रम के बाद भी थोड़ा सोता है तथा माँगने पर शत्रुओं को भी सहायता करता है, ऐसे सज्जन का अनर्थ कभी भी नही होता। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य श्लोक का अर्थ

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*चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य* *नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किञ्चित्।* *मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च* *नाल्पोऽप्यस्य च्यवते कश्चिदर्थः॥* अर्थात - जो व्यक्ति अपने अनुकूल तथा दूसरों के विरुद्ध कार्यों को इस प्रकार करता है कि लोगों को उनकी भनक तक नहीं लगती। अपनी नीतियों को सार्वजनिक नहीं करता, इससे उसके सभी कार्य सफल होते हैं। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति श्लोक का अर्थ

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न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्धते ।। . महाभारतं, आदि पर्वम् ७५ - ५० . इच्छा वस्तु विषय का अनुभव से कदापि कम नहीं होता है । अग्नि धृत के अर्पण से जैसा बढ़ती है, वैसा ही वह बढ़ती है । . Enjoying the pleasures of materialistic objects cannot subside its desires in any way. Just like the ghee poured into the sacred fire increases the latter's intensity, more the enjoyment, more the desires. . सुप्रभातम