द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव श्लोक का अर्थ


*द्वाविमौ ग्रसते भूमिः*

*सर्पो बिलशयानिव।*

*राजानं चाविरोद्धारं*

*ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥*


*अर्थात-* जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेश गमन से डरने वाले ब्राह्मण को समय ग्रसित कर लेता है, अतः उचित काल मे शत्रु का विरोध और ब्राह्मण का परदेश गमन कर यथार्थ का प्रतिपादन आवश्यक हो जाता है।


*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
 

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