निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते श्लोक का अर्थ
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्दधान: एतत् पण्डितलक्षणम्॥
अर्थात - जो सदा प्रशस्त धर्मयुक्त कर्मों का करने और निन्दित अधर्मयुक्त कर्मों को कभी न करनेवाला, जो न कदापि ईश्वर, वेद और धर्म का विरोधी हो और परमात्मा, सत्यविद्या और धर्म में दृढ़ विश्वासी हो, वह मनुष्य ‘पण्डित’ के लक्षण से युक्त होता है।
मङ्गलं सुप्रभातम्
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