आत्मनो गुरूरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः श्लोक का अर्थ
*आत्मनो गुरूरात्मैव*
*पुरुषस्य विशेषतः।*
*यत् प्रत्यक्षानुमानाभ्यां*
*श्रेयोSसावनुविन्दते।।*
(श्रीमद्भागवत 11/07/20)
अर्थात - अपना गुरु स्वयं प्राणी ही होता है, विशेषकर पुरुष के लिए, क्योंकि वह प्रत्यक्ष और अनुमान से श्रेय को जान लेने में सक्षम होता है।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
*गुरुपूर्णिमा की अनेकशः शुभकामनाएँ*
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