न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति श्लोक का अर्थ


न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति ।

हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्धते ।।

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महाभारतं, आदि पर्वम् ७५ - ५०

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इच्छा वस्तु विषय का अनुभव से कदापि कम नहीं होता है । अग्नि धृत के अर्पण से जैसा बढ़ती है, वैसा ही वह बढ़ती है ।

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Enjoying the pleasures of materialistic objects cannot subside its desires in any way. Just like the ghee poured into the sacred fire increases the latter's intensity, more the enjoyment, more the desires.

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सुप्रभातम

 

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