पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा श्लोक का अर्थ
*पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा।*
*वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः॥*
~अर्थात~- अन्याय के मार्ग पर चलने वाला राजा (पुरुष) अपने पिता-पितामहादि से विरासत में मिले राज्य को उसी प्रकार से नष्ट कर देता है जैसे तेज हवा बादलों को छिन्न -भिन्न कर देती है, अतः अन्याय मार्ग का अनुसरण कदापि न करें।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
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