कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः श्लोक का अर्थ

 


सुभाषितम्

कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । 

काल: सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥


भावार्थ - काल सभी प्राणियों को निगल जाता है । काल प्रजा का संहार करता है। सबके सो जाने पर भी काल जागृत रहता है तथा काल पर विजय पाना असम्भव है अतः हमें अहंकार करने से बचना चाहिए ।

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