ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् श्लोक का अर्थ


 

ये दारागारपुत्राप्तान् प्राणान् वित्तमिमं परम् । 

हित्वा मान् शरणं याताः कथा तान्स्त्यक्तुमुत्सहे ॥


जो भक्त स्त्री, पुत्र, गृह, गुरुजन, प्राण, धन, इहलोक, और परलोक इन सब का त्याग कर मेरी ही शरण में आ गये हैं, उन्हें छोड़ने का संकल्प भी मैं कैसे कर सकता हूं।


(श्रीमद्भागवत ९.४.६४)

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