मित्रं भुड्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो श्लोक का अर्थ
*मितं स्वपित्यमितं कर्म कृत्वा।*
*ददात्यमित्रेष्वपि याचितः संस्-*
*तमात्मवन्तं प्रजहत्यनर्थाः॥*
अर्थात - जो व्यक्ति अपने आश्रित लोगों को बाँटकर स्वयं थोड़े से भोजन से ही संतुष्ट हो जाता है, कड़े परिश्रम के बाद भी थोड़ा सोता है तथा माँगने पर शत्रुओं को भी सहायता करता है, ऐसे सज्जन का अनर्थ कभी भी नही होता।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
Excellent Shloka, keep writing. Good luck.
ReplyDeleteVikram Singh
Thanks Dear
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