अनपेक्ष्य निजं स्थानं निजां शक्तिं निजाकृतिम् श्लोक का अर्थ
अनपेक्ष्य निजं स्थानं निजां शक्तिं निजाकृतिम् ।
पुष्प्यन्ति कलिका भूयो माधवस्पर्शहर्षिताः।।
कलियाँ कहाँ सोचती हैं
कि वे उगी कहाँ हैं
वे समर्थ कितनी हैं
वे लगती कैसी हैं
वे तो वसन्त का स्पर्श पाते ही खुशी के मारे
जहाँ होती हैं, जितनी होती हैं, जैसी होती हैं–
बस खिल उठती हैं
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