असन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यः कृशधनः श्लोक का अर्थ


 

नीतिशतकम्


असन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यः कृशधनः . 

प्रिया न्याय्या वृत्तिर्मलिनमसुभङ्गेऽप्यसुकरम् ।। 

विपद्युच्चैः स्थेयं पदमनुविधेयं च महताम्। 

सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम् ।।


भावार्थ - दुर्जनों से प्रार्थना या याचना नहीं करनी चाहिए, निर्धन या अल्पधनी मित्र से धन नहीं मांगना चाहिए, न्यायपूर्ण जीवन जीना चाहिए, मृत्युवत् भय होने पर भी अनैतिक कार्य नहीं करना चाहिए, विपत्तिकाल में धैर्य रखना चाहिए तथा महान लोगों के दिखाए गए रास्ते पर चलना चाहिए। इस प्रकार तलवार की धार पर चलने जैसे कठोर मार्ग को अपनाकर जीवन व्यतीत करना ही अच्छा है ।

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