चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य श्लोक का अर्थ


*चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य*

*नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किञ्चित्।*

*मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च*

*नाल्पोऽप्यस्य च्यवते कश्चिदर्थः॥*


अर्थात - जो व्यक्ति अपने अनुकूल तथा दूसरों के विरुद्ध कार्यों को इस प्रकार करता है कि लोगों को उनकी भनक तक नहीं लगती। अपनी नीतियों को सार्वजनिक नहीं करता, इससे उसके सभी कार्य सफल होते हैं।


*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
 

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