न केवलं कृष्ण सुमाञ्जलिं मम् श्लोक का अर्थ


 

न केवलं कृष्ण सुमाञ्जलिं मम् 

गृहाण गन्धान्धितष्ट्पदावलीम्। 

अनेकदुष्कर्मविदूषिताङ्गुलि 

निजे करे मेऽपि करद्रयम् कुरु ॥


हे कृष्ण, मेरी इस अंजलि भर को मत ग्रहण करना जिसमें सुगन्ध की अधिकता से भौंरों को उन्मत्त कर देने वाले फूल भरे हैं, बल्कि मेरी इन हथेलियों को भी अपने हाथों में ले लेना जिनकी उँगलियाँ अनेक दुष्कर्मों से दूषित हैं।

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