पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम् श्लोक का अर्थ


*पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य*

*छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्।*

*ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा-*

*दृते पात्रादिवोदकम्॥*


अर्थात - मनुष्य की पाँचों इंद्रियों में यदि एक में भी दोष उत्पन्न हो जाता है तो उससे उस मनुष्य की बुद्धि उसी प्रकार बाहर निकल जाती है, जैसे मशक (जल भरने वाली चमड़े की थैली) के छिद्र से पानी बाहर निकल जाता है। अर्थात् इंद्रियों को वश में न रखने से हानि होती है।


*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
 

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