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Showing posts from June, 2021

किन्नु मे स्यादिदं कृत्वा किन्नु मे स्यादकुर्वतः श्लोक का अर्थ

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किन्नु मे स्यादिदं कृत्वा किन्नु मे स्यादकुर्वतः।* इति कर्माणि सञ्चिन्त्य कुर्याद्वा पुरुषो न वा॥* अर्थात - काम को करने से पहले विचार करें कि उसे करने से क्या लाभ होगा तथा न करने से क्या हानि होगी ? कार्य के परिणाम के बारे में विचार करके कार्य करें या न करें। लेकिन बिना विचारे कोई कार्य न करें। मङ्गलं सुप्रभातम्  

सत्सङ्गत्वे निस्सङ्गत्वं निस्सङ्गत्वे निर्मोहत्वम् श्लोक का अर्थ

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  सत्सङ्गत्वे निस्सङ्गत्वं निस्सङ्गत्वे निर्मोहत्वम् । निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः।।  सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। *सुप्रभात*

पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम् श्लोक का अर्थ

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*पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य* *छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्।* *ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा-* *दृते पात्रादिवोदकम्॥* अर्थात - मनुष्य की पाँचों इंद्रियों में यदि एक में भी दोष उत्पन्न हो जाता है तो उससे उस मनुष्य की बुद्धि उसी प्रकार बाहर निकल जाती है, जैसे मशक (जल भरने वाली चमड़े की थैली) के छिद्र से पानी बाहर निकल जाता है। अर्थात् इंद्रियों को वश में न रखने से हानि होती है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छिता श्लोक का अर्थ

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*षड् दोषा: पुरुषेणेह* *हातव्या भूतिमिच्छिता।*  *निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधम्* *आलस्यं दीर्घसूत्रता॥* अर्थात - संसार में उन्नति के अभिलाषी व्यक्तियों को नींद, तंद्रा (ऊँघ), भय, क्रोध, आलस्य तथा देर से काम करने की आदत - इन छह दुर्गुणों को सदा के लिए त्याग देना चाहिए। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*  

कादम्बिनी रसवती गगनं समास्य श्लोक का अर्थ

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  कादम्बिनी रसवती गगनं समास्य  राजन्वतीं रसवतीं कुरुते यदासौ।  सञ्जीवनीं प्रतिजलं वनितां विलोक्य  ह्यालिङ्गितुञ्च परिचुम्बितुमेति चित्तम्।।          जब जलसे भरी हुयी मेघ की माला पुरे गगनमें व्याप्त होकर इस धरा को जलयुक्त बनाती है तब उस की हर बुंदमें मुझे अपनी सञ्जीवनी प्रेयसी ही दिखाई देती हैं और उसे देखकर उसे गले लगाने के लिए और चुमने के लिए मेरा मन चला जाता हैं।